May 23, 2025
कम शक्ति वाला होने पर भी शक्ति संपन्न की भांति अपने को प्रकट करे। ऐसा करने से वह (राजा, मनुष्य) नष्ट नहीं होता।
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अधम पुरुषों को जीविका न रहने से भय लगता है, मध्यम श्रेणी के मनुष्यों को मृत्यु से भय लगता है परंतु उत्तम पुरुषों को अपमान से ही महान भय होता है।
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ऐश्वर्य का नशा सबसे बुरा है, क्योंकि ऐश्वर्य के मद से मतवाला पुरुष भ्रष्ट हुए बिना होश में नहीं आता।
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जो जीवों को वश में करने वाली सहज पांच इंद्रियों से जीत लिया गया, उसकी आपत्तियां शुक्ल पक्ष के चंद्रमा की भांति बढ़ती हैं। अर्थात् मनुष्य को इंद्रियों के वशीभूत नहीं होना चाहिये।
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मनुष्य का शरीर रथ है, बुद्धि सारथी है, मन लगाम है, इंद्रियां उसके घोड़े हैं, आत्मा इसका सवार है। इनको वश में करके सावधान रहने वाला चतुर एवं बुद्धिमान पुरुष काबू में किए हुए घोड़ों से रथी की भातीं सुखपूर्वक यात्रा करता है।
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दुष्टों का त्याग ना करने से व उनके साथ मिले रहने से निरापराध सज्जन भी समान दंड पाते हैं जैसे सूखी लकड़ी में मिल जाने से गीली लकड़ी भी जल जाती है।
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मधुर शब्दों में कही हुई बात अनेक प्रकार से कल्याण करती है, किंतु वहीं यदि कटु शब्दों में कही जाए तो महान अनर्थ का कारण बन जाती है।
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देवता लोग जिसे पराजय देते हैं उसकी बुद्धि को पहले ही हर लेते हैं, विनाशकाल उपस्थित होने पर बुद्धि मलीन हो जाती है।
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देवता लोग चरवाहों की तरह डंडा लेकर किसी का पहरा नहीं देते। वे जिसकी रक्षा करना चाहते हैं, उसको उत्तम बुद्धि से युक्त कर देते हैं।
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बारंबार किया गया पाप बुद्धि को नष्ट कर देता है। जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह सदा पाप ही करने लगता है।
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