परों को खोल ज़माना उड़ान देखता है

परों को खोल ज़माना उड़ान देखता है - shayari
MR. SANDHATA
परों को खोल जमाना उड़ान देखता है - shayari


परों को खोल ज़माना उड़ान देखता है,
ज़मीं पे बैठके क्या आसमान देखता है।

मिला है हुस्न तो इस हुस्न की हिफ़ाज़त कर,
सँभल के चल तुझे सारा जहान देखता है।।

कनीज़ हो कोई या कोई शाहज़ादी हो,
जो इश्क़ करता है कब ख़ानदान देखता है।

घटाएँ उठती हैं बरसात होने लगती है,
जब आँख भर के फ़लक को किसान देखता है।।

यही वो शहर जो मेरे लबों से बोलता था,
यही वो शहर जो मेरी ज़बान देखता है।

मैं जब मकान के बाहर क़दम निकालता हूँ,
अजब निगाह से मुझको मकान देखता है।।

WRITER - SHAKEEL AZMI, REF- FACEBOOK

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