तुमने मुझसे मुख मोड़ लिया
तुमने मुझसे मुख मोड़ लिया,
मैंने ख्याबों से सुख जोड़ लिया।
जन्म जन्म का नाता था जो,
तुमने कैसे सब छोड़ दिया।।
हृदय में अब पीर बसी जो,
जाकर अब किसे दिखाऊं।
किसे प्रेम के गीत सुनाकर,
मन ही मन खुद को बहलाऊं।।
मौसम बदला नहीं आये तुम,
कैसे अपनी पीड़ा दिखलाऊं।
हुए परदेसी, पीड़ित तन, मन,
कैसे अपने को समझाऊं।।
दग्ध जीवन राख़ हो चला,
नींद में सपनों के अँगारे।
रात रात भर उन पर लेटी,
रो रो कब तक रैन बिताऊं।।
दूर हुए परदेस में जाकर,
खबर न पत्री न सन्देशा।
चुभते फूल शुलों से जैसे,
कैसे पीड़ा को सह जाऊं।।
आ जाओ अब, बीत गए युग,
इक पल तुमको भूल न पाऊं।
धूमिल पड़ा रूप का दर्पण,
किसके लिए खुद को सजाऊं।।
लेखक: सुषमा गौर | स्रोत : सोशल मीडिया