Rahat Indori ki shayari
राहत इंदौरी (1950-2020) एक प्रख्यात भारतीय उर्दू शायर और गीतकार थे। उनका जन्म 1 जनवरी 1950 को इंदौर, मध्य प्रदेश में हुआ था। राहत इंदौरी का असली नाम राहत कुरैशी था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक चित्रकार के रूप में की, लेकिन बाद में उर्दू साहित्य और शायरी की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई।
Rahat Indori की शायरी में सामाजिक मुद्दों, प्रेम, राजनीति और विद्रोह का अनूठा मिश्रण होता था। उनकी शायरी की खासियत उनकी भाषा की सरलता और गहराई थी, जो आम आदमी के दिल को छू लेती थी। उनकी प्रसिद्ध ग़ज़लों में "बुलाती है मगर जाने का नहीं" और "अंदाज़-ए-बयां और" शामिल हैं। फिलहाल, हम यहां पर उनकी प्रसिद्ध शायरी आपके लिए उपलब्ध करा रहे हैं जो निम्नलिखित है:
बनके एक हादसा बाजार में आ जाएगा।ना जाने कब कौन अखबार में आ जाएगा।।चोर उचक्कों की करो कद्र, कि मालूम नहीं।कौन, कब कौन सी सरकार में आ जाएगा।।
जो दुनिया को सुनाई दे उसे कहते हैं ख़ामोशी,जो आँखों में दिखाई दे उसे तूफ़ान कहते हैं।
अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए,कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गए।
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है,चाँद पागल है जो अँधेरे में निकल पड़ता है।
दो गज़ सही मगर ये मेरी मिल्कियत तो है,ऐ मौत तूने मुझे ज़मींदार कर दिया।
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा,हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा।
ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था,उस की याद आई है सांसो ज़रा आहिस्ता चलो।
धड़कनों से भी इबादत में खलल पड़ता है,मैं बच भी जाता तो एक रोज मरने वाला था।
आँख में पानी और होंठो पर चिंगारी रखो,ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो।
ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई मांगे,जो हो परदेस में है वो किससे रज़ाई मांगे।
कहीं अकेले में मिले तो झिंझोड़ दूँगा उसे,जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे।
मेरा नसीब, मेरे हाथ कट गए वरना,मैं तेरी माँग में तो सिन्दूर भरने वाला था।
तूफ़ानों से आँख मिलाओ सैलाबों पर वार करो,मल्लाहों का चक्कर छोड़ो तैर के दरिया पार करो।
अपने हाकिम की फकीरी पे तरस आता है,जो गरीबों से पसीने की कमाई मांगे।
फूलों की दुकानें खोलो खुशबू का व्यापार करो,इश्क़ खता है तो ये खता एक बार नहीं सौ बार करो।
जुबां तो खोल नजर तो मिला जवाब तो दे,मैं कितनी बार लुटा हूं कुछ हिसाब तो दे।
किसने दस्तक दी दिल पे, ये कौन है;आप तो अन्दर हैं, फिर बाहर कौन है।
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर,जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं।
मोड़ होता है जवानी का सँभलने के लिए,और सब लोग यहीं आ के फिसलते क्यूं हैं।
हम से पहले भी मुसाफ़िर तो कई गुज़रे होंगे,कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते।
नींद से मेरा ताल्लुक़ ही नहीं बरसों से,ख़्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यूं हैं।
एक चिंगारी नज़र आई थी बस्ती में उसे,वो अलग हट गया आँधी को इशारा करके।
इन रातों से अपना रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है,नींदें कमरों में जागी हैं ख़्वाब छतों पर बिखरे हैं।
दोस्ती जब किसी से की जाए,दुश्मनों की भी राय ली जाए।
दिन ढल गया और रात गुज़रने की आस में,सूरज नदी में डूब गया, हम गिलास में।
शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम,आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे।
राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें,रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो।
एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तों,दोस्ताना ज़िंदगी से तो मौत से भी यारी रखो।
माँ के क़दमों के निशां हैं कि दिये रौशन हैं,ग़ौर से देख यहीं पर कहीं जन्नत होगी।
रास्ते में फिर वही पैरों को चक्कर आ गया,जनवरी गुज़रा नहीं था और दिसंबर आ गया।
हाथ खाली है तेरे शहर से जाते जाते,जान होती तो जान लुटाते जाते।
मैं जब मर जाऊं तो मेरी पहचान लिख देना,लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना।
गुलाब, ख़्वाब, दवा, ज़हर, जाम क्या क्या है,मैं आ गया हूँ, बता इंतज़ाम क्या क्या है।
प्यास अगर मेरी बुझा दे तो मैं जानू वरना,तू समंदर है तो होगा मेरे किस काम का है।
राहत इंदौरी ने फिल्मों में भी अपने गीतों के माध्यम से योगदान दिया, जिनमें "मुन्ना भाई एमबीबीएस (Munna bhai MBBS)" और "करीब" जैसी फिल्मों के गाने शामिल हैं। उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुशायरों में भाग लिया और अपनी भावपूर्ण शायरी से दर्शकों का दिल जीता।
2020 में, 70 वर्ष की आयु में, राहत इंदौरी का निधन हो गया, लेकिन उनकी शायरी आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है। उनकी रचनाएं और उनकी आवाज़ भारतीय साहित्य और संगीत जगत में अमर रहेंगी।