कविता: युद्ध नहीं जिनके जीवन में..!
युद्ध नहीं जिनके जीवन में,
वे भी बहुत अभागे होंगे..।
या तो प्रण को तोड़ा होगा,
या फिर रण से भागे होंगे..।।
दीपक का कुछ अर्थ नहीं है,
जब तक तम से नहीं लड़ेगा..
दिनकर नहीं प्रभा बाँटेगा,
जब तक स्वयं नहीं धधकेगा..।।
कभी दहकती ज्वाला के बिन,
कुंदन भला बना है सोना..।
बिना घिसे मेहंदी ने बोलो,
कब पाया है रंग सलौना..।।
जीवन के पथ के राही को,
क्षण भर भी विश्राम नहीं है..।
कौन भला स्वीकार करेगा,
जीवन एक संग्राम नहीं है..।।
अपना अपना युद्ध सभी को,
हर युग में लड़ना पड़ता है..।
और समय के शिलालेख पर,
खुद को खुद गढ़ना पड़ता है..।।
ये अनवरत लड़ा जाता है,
होता युद्ध विराम नहीं है..।
कौन भला स्वीकार करेगा,
जीवन एक संग्राम नहीं है..।।