लाजवाब दर्द-भरी शेरों - शायरी
शायद उनका आखिरी हो, ये तोहफ़ा-ए-दर्द..,
हर दर्द ये सोच कर, हम सह गए!
कितना दर्द लिए चलता हूं बतलाऊं क्या,
हर शायरी में है जिक्र तुम्हारा सुनाऊं क्या।
और सुना है नफरत है तुम्हें मेरे लिखने से,
अब चाहती क्या हो मर जाऊं क्या।।
दर्द मिन्नत कशें दवा न हुआ,
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ।
सिर से सीने तक, पेट से पाँव तक,
एक जगह हो तो बतायें, दर्द किधर होता है।
ऐसा लगता है कि उड़ कर भी कहाँ पहंचेंगे,
हाथ में जब कोई टूटा हुआ पर होता है।
"अदाकारी ऐसी कि, हमेशा मुस्कुरा के रोया हूँ,
नादानी ऐसी कि वाकिफ़ था जहां से, वहीं पे खोया हूँ।
मैं किस दर्द से गुज़रा हूँ, तुम्हे क्या बताऊँ यारों,
मख़मली रज़ाई के तले, कांटो की सेज पे सोया हूँ।"
चंदा बार-बार छिप जाता हैँ, ऐसा सितारें मानते हैं;
दर्द-ए-जुदाई का गम, सिर्फ आशिक़ जानते हैं।
सबसे दूर जाना है ख़ुद के करीब आने के लिए,
किसी का दर्द तो बस एक मुद्दा है ज़माने के लिए।
हर मौसम में दर्द से घिरे रहते हैं।
ये कैसे जख्म हैं जो हरे रहते हैं।।
Heart broken shayari in Hindi
तुमसे दर्द पाकर भी नाराज़ नहीं हूँ,
कुछ इस तरह में दिल्लगी निभा रहा हूँ।
दर्द हैं तो हैं दर्द भी जिंदगी का एक हिस्सा हैं,
पर इसका मतलब ये नहीं कि कुछ ग़लत करे।
बड़ा दर्द दिया है उसने आज उसकी याद दिलाकर,
जिसने ज़हर पिला दिया हमें मोहब्बत में मिलाकर।
तुझको लफ्ज़ों में समझा रही हूं,
हर दर्द से वाकिफ करवा रही हूं।
मुझे कितनी मोहब्बत है तुझसे ऐ जान,
अपनी धड़कने तुझको आज सुना रही हूं।
माना के सांसों को अब मोहलत न मिलेगी,
पर मुझ जैसी तुझको कहीं चाहत न मिलेगी।
हर ग़म से तुझको आज रुखसत करा रही हू।
फिर भी माज़ी का ख़याल आता है गाहे-गाहे,
मुद्दतें दर्द की लौ कम तो नहीं कर सकतीं।
ज़ख़्म भर जाएँ मगर दाग़ तो रह जाता है,
दूरियों से कभी यादें तो नहीं मर सकतीं।
मेरे दर्द पे न मेरा इख़्तियार है।
मेरे ज़ख्मों पर दुनिया सवार है।।
दिल ऐसे धड़कता है मेरा तेरे शहर से गुजरते वक़्त,
मीठा सा दर्द होता है जैसे ज़ख्म के भरते वक़्त।
किसे जाकर सुनाएँ दर्द अपना,
यहाँ सुनने का ही सिस्टम नहीं है।
जब आंखों में नमी, कानो में सुन सी आवाज,
मुंह की न बोलने की स्थिति,
और शरीर शिथिल सा हो जाए;
तो ये दर्द की स्थिति होती है।
जाने किसका ज़िक्र है इस अफ़्साने में,
दर्द मज़े ले रहा दोहराने में।
दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला है,
किसकी आहट सुन रहा हूँ वीराने में।।
अगर दर्द-ए-मोहब्बत से न इंसान वाकिफ होता।
न कुछ मरने का ग़म होता न जीने का मज़ा होता।।
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना।
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।।
अपने दर्द को अपने रब से बाट लिया करो।
फिर दर्द जाने, दुआ जाने और खुदा जाने।।
दर्द भरी लाजवाब शायरी
तुमने ख़ुद ही सर चढ़ाई थी सो अब चक्खो
मज़ा,
मैंने कहा था कि दुनिया दर्द-ए-सर हो
जाएगी।
क्यूँ हिज्र के शिकवे करता
है,
क्यूँ दर्द के रोने रोता है।
अब इश्क़ किया तो सब्र भी कर,
इसमें तो यही कुछ होता है।।
दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या
रब,
मेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर
नहीं।
ज़रूरी तो नहीं हर दर्द को आवाज़ मिल
जाए,
कई दर्द ख़ामोश रह जाते हैं सीने
में..
गुमसुम-गुमसुम क्यों रहते हो,
हर दर्द अकेले क्यों सहते हो ?
हम भी तुम्हारे हमदर्द हैं प्यारे,
सब कुछ तो ठीक है क्यों कहते हो
?
दिल में है जो दर्द वो किसे बताए,
हँसते हुए ज़ख्म को किसे दिखाए।
कहती है ये दुनिया हमे खुशनसीब,
मगर नसीब की दास्तान किसे सुनाए।
जो दर्द कल हमने अपनों से कहे थे,
आज वे ही गैर बनकर ताने सुना
दिए।
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर
होगी,
सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर
होगी।
मुस्कुराहट के पीछे,,
दर्द का एक जहान छुपा रखा है।
मौसम की ठंडी बर्दाश्त करने के लिए,
दिल में कुछ अरमान जला रखा है।।
जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने
भर दिए,
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ
गया।
बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं
जाता,
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं
जाता।
अब ख़ुशी है न कोई दर्द रुलाने
वाला,
हम ने अपना लिया हर रंग ज़माने
वाला।
नींद तो दर्द के बिस्तर पर भी आ सकती
है,
उनकी आग़ोश में सर हो, ये ज़रूरी तो
नहीं।
न जाने शेर में किस दर्द का हवाला
था,
कि जो भी लफ़्ज़ था, वो दिल दुखाने
वाला था।
इश्क़ की चोट का कुछ दिल पे असर हो तो
सही,
दर्द कम हो या ज़्यादा, मगर हो तो
सही।
आदत के ब'अद दर्द भी देने लगा मज़ा,
हँस हँस के आह आह किए जा रहा हूँ
मैं।
दर्द हो दिल में तो दवा कीजे,
और जो दिल ही न हो तो क्या कीजे।
ऐसे तो ठेस न लगती थी, जब अपने रूठा
करते थे।
ऐसे तो दर्द न होता था, जब सपने टूटा
करते थे।।
दर्द-भरी लाजवाब शेरों - शायरी
जब दर्द नहीं था
सीने
में,
तब खास मजा था
जीने में
...
दर्द-ए-दिल
कितना पसंद आया
उसे,
मैंने जब की आह
उस ने वाह
की।
अब तो ये भी
नहीं रहा
एहसास,
दर्द होता है या
नहीं होता।
हर किसी की एक
अलग कहानी है।
बहुतों ने उसे
लिखा, किसी ने
इश्क लिखा,
किसी ने जुदाई,
किसी ने खुशियां
लिखी,
किसी ने गम,
मेरे हिस्से में
बचा दर्द,
सो मैंने दर्द
लिखा।
दीदारे दर्द का
किस्सा, बड़ा
बेचैन करता है
गुजरते हर
लम्हों में तेरा
ही जिक्र रहता
है।
वो कहते हैं कि
बताओ,
अब दर्द कैसा
है, कुछ कम हुआ
है,
कि पहले के ही
जैसा है।
दर्द भी देख सके
वो नज़र पैदा
कर,
महफ़िल में हाथ
थाम सके वो जिगर
पैदा कर।
दुनिया के आगे
तु फरिश्ता बना
है,
पर मन में रहे
यह भाव वो कदर
पैदा कर।।
ये समझ तूने कुछ
भी कमाया नहीं
है,
दर्द घुटनों में
अब तक तो आया
नहीं है !
मैंने हर बार
राह देखी है
तुम्हारी,
भले ही तुम जब
भी आये दर्द ही
लाये..
झूटी उम्मीद की
उँगली को पकड़ना
छोड़ो,
दर्द से बात
करो, दर्द से
लड़ना
छोड़ो।
दर्द तो होगा जब
जिंदा
हैं,
वरना मुर्दे को
कहां जलन होती है
चिता में।
दर्द कुछ वक्त
के लिए आता
है,
लेकिन वक्त
हमेशा एक जैसा
नहीं होता !
दर्दे–दिल की आह
तुम न समझोगे
कभी,
हर दर्द का मातम
सरेआम नहीं
होता।
दर्द ओ ग़म से
रिश्ता पुराना है
हमारा,,
हमारी ख़ुशियों
में भी ग़म साथ
चलते हैं।
मेरे इश्क के
दर्द-ए-दिल की
दवा यूं वो कातिल
करते हैं,
दुनिया के
ज़ुल्मों सितम से
बचा आंखों से
क़त्ल करते
हैं।
तुम नहीं समझोगे
उस दर्द की
हक़ीक़त,
जिसमें पहले
पाने
की,
फ़िर भूल जाने
की दुआ की
जाए।
एक दिन बिना
किसी गुनाह के
सजा काट के
आओ..
फिर पता चलेगा
पिंजरों मे बन्द
परिंदों का
दर्द..
तुम दर्द होकर,
कितने अच्छे लगते
हो,
खुदा जाने,
हमदर्द होते तो
क्या
होता..!!
बड़ा बेदर्द है
ये ज़माना, नफरत
उसी को देता
है,
जो यहाँ प्यार
लुटाए फिरता है
!!
जो तू दे गई दिल
को, वो मर्ज़ आज
भी है।
ज़ख़्म भर गए
है, लेकिन दर्द
आज भी है।।
तू चली गई
छोड़कर मुझे मगर
एक बात याद
रखना,
तेरे सर पे मेरी
मोहब्बत का कर्ज
आज भी है।।
बिखरा पड़ा था
दर्द काग़ज़ पे
इस तरह,
जिसने पढ़ा उसकी
आँख से
बहा।
आज तो दिल के
दर्द पर हँस
कर,
दर्द का दिल
दुखा दिया
मैंने।
Top Dard-Bhari Shayari
कभी इस दर्द से
गुजरो तो, तुम्हें
मालूम चले;
जुदाई वो बिमारी
है, जो दिल का खून
पीती है।
अगर मौजें डुबो
देतीं तो कुछ सब्र
हो जाती,
किनारों ने
डुबोया, मुझे इस
बात का ग़म
है।
कौन सी सूरत बदल
दी ज़िंदगी की मौत
ने,
लोग मिट्टी को ही
तो मिट्टी में
दफ़नाने
गए।
मुझे पल भर के लिए
आसमान से मिलना था
,
पर घबराई हुई खड़ी
थी...
कि बादलों की भीड़
में से कैसे
गुज़रूँगी..।
थकना भी लाज़मी
था, कुछ काम करते
करते।
कुछ और थक गया हूँ
आराम करते
करते।।
हालात से ख़ौफ़ खा
रहा हूँ,
अब शीशे के महल
बना रहा हूँ।
तुम्हारे साथ ये
मौसम फ़रिश्तों
जैसा है,
तुम्हारे बाद ये
मौसम बहुत
सताएगा।
आज ख़ुद को बेचने
निकले थे हम,
आज ही बाजार मंदा
हो गया।
आपकी चाहतों पर
भरोसा किया,
फिर न सोचा कि
अच्छा किया या बुरा
किया।
मीठी झील का पानी
पीने की ख़ातिर,
उस जंगल से रोज़
गुज़रना ठीक
नहीं।
आह जो दिल से
निकाली जाएगी,
क्या समझते हो कि
खाली जाएगी।
गुज़रता है मेरा
हर दिन मगर पूरा
नहीं होता,
मैं चलता जा रहा
हूँ मगर सफ़र पूरा
नहीं होता।
ख़ुदी को कर बुलंद
इतना कि हर तक़दीर
से पहले,
ख़ुदा बंदे से
ख़ुद पूछे बता तेरी
रज़ा क्या
है।
सपनों का बाजार
नहीं कर सकते
हैं,
ख़ुद को यूँ लाचार
नहीं कर सकते
हैं।
हर मोड़ कहानी
उसकी कहते जाता
है,
जिसका हम दीदार
नहीं कर सकते
हैं।
दिल की तकलीफ़ कम
नहीं करते,
अब कोई शिकवा हम
नहीं करते।
"दर्द-ओ-अलम बन
चुकी है आदत
मासूमों की,
पैगाम-ए-मोहब्बत
से बेचारे धबरा
गए।
हर हक़ से
है महरूम यह सड़कों
के पालें,
खुदकुशी ना
कर सके रूहकुशी पे
आ गये।। "
मोहब्बत करने वाले
दर्द में तन्हा
नहीं होते,
जो रूठोगे कभी
मुझसे तो अपना दिल
दुखाओगे।
सुन चुका जब हाल
मेरा, ले के
अंगड़ाई कहा !
क्या ग़ज़ब का
दर्द ज़ालिम तेरे
अफ़्साने में
था।
ग़म और ख़ुशी में
फ़र्क़ न महसूस हो
जहाँ,
मैं दिल को उस
मुक़ाम पर लाता चला
गया।
हाँ उन्हीं लोगों
से दुनिया में
शिकायत है हमें,
हाँ वही लोग जो
अक्सर हमें याद आए
हैं।