कहानी: दो बूँदों की मेहरबानी
एक समय की बात है, एक छोटे से गाँव के किनारे एक बुजुर्ग कुम्हार रहा करता था। उसका जीवन सादगी भरा था, पर उसके बनाए घड़े गाँव में बड़े चाव से खरीदे जाते थे। हर घड़ा न सिर्फ़ खूबसूरत होता, बल्कि सालों-साल पानी भी संभाल कर रखता।
कुम्हार के पास दो बड़े घड़े थे। वह रोज़ उन्हें कंधे पर रखकर नदी से पानी भर लाता था। पर उनमें से एक घड़ा हल्का-सा चटक गया था। रोज़ जब वह पानी भरकर घर लौटता, उस घड़े से रास्ते में बूँद-बूँद पानी गिरता रहता।
कई महीनों तक यही चलता रहा। आखिरकार, एक दिन उस फूटे घड़े से रहा न गया। उसने धीमे स्वर में कहा— "मालिक, आप मुझसे जितना भरोसा करते हैं, मैं उतना काम का नहीं हूँ। मेरा पेट आधा खाली ही रह जाता है। मुझे बदल क्यों नहीं देते?"

कुम्हार मुस्कुराया। उसकी झुर्रियों में भी एक कहानी छुपी हुई थी। "कल तू ध्यान से देखना, फिर बता कि तुझे बदलना चाहिए या नहीं," उसने कहा।
अगली सुबह, जैसे ही कुम्हार ने पानी भरा और गाँव की पगडंडी पर चला, उसने घड़े से कहा— "रास्ते के दाएँ ओर देख ज़रा…"
घड़े ने देखा, पूरे रास्ते पर छोटे-छोटे फूल खिले थे — पीले, लाल, नीले… जैसे धरती ने चुपचाप मुस्कुराना सीख लिया हो। जबकि दूसरी ओर, जहाँ से पानी नहीं टपकता था, रास्ता सूना और सूखा पड़ा था।
कुम्हार ने प्यार से कहा— "मैं जानता था तू टूटा है, इसलिए मैंने तेरी ओर के रास्ते में चुपचाप बीज बो दिए थे। तेरी हर गिरती बूँद उन बीजों को सींचती रही… और देख, कितनी सुंदरता फैला दी तूने!"
फूटा घड़ा अब मौन था, पर उसके भीतर कहीं एक हल्की-सी ख़ुशी की दरार भी उभर आई थी।